उच्चारण का अर्थ है – किसी भाषा के शब्दों और ध्वनियों को सही ढंग से बोलना। हिंदी भाषा का सही उच्चारण करना आवश्यक है क्योंकि शब्दों के गलत उच्चारण से उनका अर्थ बदल सकता है और संचार में बाधा उत्पन्न होती है। हिंदी का उच्चारण मुख्यतः देवनागरी लिपि पर आधारित है और ध्वनि के अनुसार ही लिखा-बोला जाता है।
2. उच्चारण के नियम
हिंदी उच्चारण के कुछ मूलभूत नियम इस प्रकार हैं –
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स्वर का उच्चारण स्पष्ट होना चाहिए –
जैसे: अ (अनर) और आ (आम) में अंतर स्पष्ट हो। -
अनुस्वार (ं) का उच्चारण –
अनुस्वार का उच्चारण उसके बाद आने वाले व्यंजन के वर्ग के अनुसार बदलता है।-
पंकज → पङ्कज (ङ ध्वनि)
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संकल्प → सङ्कल्प (ङ ध्वनि)
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संपत्ति → सम्पत्ति (म ध्वनि)
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विसर्ग (ः) का उच्चारण –
यह हल्की ह की ध्वनि के साथ होता है।
उदाहरण: दुःख, सः, प्रः -
युक्ताक्षर (संयुक्त व्यंजन) –
दो या दो से अधिक व्यंजनों के मिलने से बने अक्षर को एक ही ध्वनि में उच्चारित करना चाहिए।
उदाहरण: क्षेत्र (क्ष + े + त्र), त्रय (त्र + य) -
अर्धस्वर का प्रयोग –
जैसे: य, र, ल, व को पूर्ण स्वर की तरह नहीं, बल्कि हल्की ध्वनि के साथ बोलना चाहिए।
3. वर्तनी का अर्थ
वर्तनी का अर्थ है – किसी शब्द को उसके मानक रूप में सही-सही लिखना। वर्तनी भाषा की शुद्धता का प्रतीक है और लेखन में इसका विशेष महत्व है।
4. वर्तनी के नियम
हिंदी वर्तनी के कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं –
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स्वर-संधि में सही लेखन
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राम + ईश्वर = रामेश्वर
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सत + अंत = सतंत (स्वर लोप हो सकता है)
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अनुस्वार और अनुनासिक का भेद
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अनुस्वार (ं) = पंक्ति, संकल्प
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अनुनासिक (ँ) = चाँद, माँ
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य और ज का प्रयोग
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संस्कृत मूल के शब्दों में प्रायः य का प्रयोग होता है।
जैसे: नीति + युक्त → नीतियुक्त -
तत्सम शब्दों में ज का प्रयोग होता है।
जैसे: विजय, ज्ञानज
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श्रुतिलाघव (उच्चारण के आधार पर लेखन)
जैसे:-
विद्या + आलय = विद्यालय (न कि विदयालय)
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महा + ऋषि = महर्षि (न कि महाऋषि)
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संस्कृत व हिंदी मिश्रित रूपों का लेखन
संस्कृत के तत्सम शब्द ज्यों के त्यों लिखे जाते हैं, जबकि तद्भव शब्द प्रचलित रूप में।-
सूर्य (तत्सम), सूरज (तद्भव)
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✨ निष्कर्ष
उच्चारण और वर्तनी भाषा की आत्मा हैं। यदि शब्दों का उच्चारण शुद्ध न हो या वर्तनी गलत हो, तो भाषा की प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसलिए हिंदी सीखने वालों के लिए इन नियमों का अभ्यास और पालन करना अत्यंत आवश्यक है।
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